यह मानने के पर्याप्त आधार हैं कि राम मंदिर के भूमि पूजन के लिए चुना गया यह समय एक छोटी रेखा के बगल में बड़ी रेखा खींचने की क़वायद है, ताकि नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की बढ़ती असफलताएं जैसे- कोविड कुप्रबंधन, बदहाल होती अर्थव्यवस्था और गलवान घाटी प्रसंग- इस परदे के पीछे चले जाएं.
अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन से पहले लगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य नेताओं का एक होर्डिंग. (फोटो: पीटीआई)
बीते दिनों जनाब उद्धव ठाकरे द्वारा अयोध्या में राम मंदिर के प्रस्तावित भूमि पूजन को लेकर जो सुझाव दिया गया है, वह गौरतलब है.
मालूम हो कि आयोजकों की तरफ से जिन लोगों को इसके लिए न्योता दिया गया है, उसमें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का नाम भी शामिल है, उसी संदर्भ में उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि ‘ई-भूमि पूजन किया जा सकता है और भूमि पूजन समारोह को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये भी अंजाम दिया जा सकता है.’
उनका कहना है कि इस कार्यक्रम में लाखों लोग शामिल होना चाहेंगे और क्या उन्हें वहां पहुंचने से रोका जा सकता है? कोरोना महामारी को लेकर देश-दुनिया भर में जो संघर्ष अभी जारी है और जहां धार्मिक सम्मेलनों पर पाबंदी बनी हुई है, ऐसे में उनकी बात गौरतलब है.
गौर करें कि ऐसा आयोजन जिसका लाइव टेलीकास्ट भी किया जाएगा, कोई चाहे न चाहे देश में जगह जगह जनता के अच्छे-खासे हिस्से को सड़कों पर उतरने के लिए प्रेरित करेगा.
और अगर दक्षिणपंथी जमातें इस बारे में अतिसक्रियता दिखा दें तो फिर जगह जगह भीड़ बेकाबू भी हो सकती है और केंद्र सरकार और गृह मंत्रालय द्वारा जारी गाइडलाइंस की भी धज्जियां उड़ सकती हैं.
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