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बढ़ती जनसंख्या का डर: असलियत और फसाना

May 11, 2024

आधा ज्ञान या आधी जानकारी हमेशा ही खतरनाक साबित होती है।

2021 की जनगणना तक करने में फिसड्डी साबित हो चुकी मोदी सरकार की इकोनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल की तरफ से चुनावों  के ऐन बीच जारी आंकड़े शायद यही कहानी कहते हैं। इस रिपोर्ट के जरिए 1951 से 2015 के कालखंड के दौरान विभिन्न समुदायों की आबादी में हुए परिवर्तनों के आंकड़े पेश किए गए, जिसमें हिन्दुओं, जैनियों तथा अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों की आबादी मे कुल गिरावट देखने को मिली है, जबकि मुसलमानों की आबादी बढ़ी है। और इस रिपोर्ट को लेकर सत्ताधारी पार्टी के प्रवक्ताओं ने तथा मुख्यधारा के गोदी चैनलों ने जनसंख्या का हौवा दिखाते हुए बहस भी छेड़ने की कोशिश की ।

पीटीआई की तरफ से जारी यह आंकड़े इस प्रकार थे:

वर्ष 1951 से 2015 के बीच जहां हिन्दुओं की आबादी में 7.8 फीसदी की घटोत्तरी हुई वहीं मुसलमानों की आबादी 43.1 फीसदी बढ़ी। अगर हम आंकड़ों का ब्रेकअप करें तो 1950 में जहां आबादी में हिन्दुओं की तादाद 84.68 फीसदी थी तो वह 2015 में 78.06 फीसदी तक पहुंची थी , जबकि मुसलमानों की आबादी जहां 1950 में कुल आबादी का 9.84 फीसदी थी तो 2015 में वह 14.09 फीसदी तक पहुंची। भारत के जैन समुदाय के बारे में भी बताया गया कि उनकी आबादी देश की कुल आबादी के 0.45 फीसदी से लेकर 0.36 फीसदी तक कम हुई है।

पुराने आंकड़े-नया रंगरोगन ?

सबसे पहली बात यह है कि इकोनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल की तरफ से जारी इन आंकड़ों  में नया कुछ नहीं है। 2011 तक जो जनगणना का सिलसिला विधिवत चला है, उसके बाद यह आंकड़े पहले से ही चर्चा में रहे हैं। ( Read the full article here : https://janchowk.com/beech-bahas/fear-of-increasing-population-reality-and-trap/)

ज़ुबां पर आंबेडकर, दिल में मनु

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एससी/एसटी एक्ट को कमज़ोर करने के ख़िलाफ़ बुलाए गए भारत बंद का दृश्य. (फोटो: पीटीआई)

 

2 अप्रैल का ऐतिहासिक भारत बंद लंबे समय तक याद किया जाएगा. जब बिना किसी बड़ी पार्टी के आह्वान के लाखों लाख दलित एवं वंचित भारत की सड़कों पर उतरें और उन्होंने अपने संघर्ष एवं अपने जज्बे से एक नई नजीर कायम की.

आजादी के सत्तर सालों में यह पहला मौका था कि किसी अदालती आदेश ने ऐसी व्यापक प्रतिक्रिया को जन्म दिया था. ध्यान रहे कि इस आंदोलन के दौरान हिंसा हुई और चंद निरपराधों की जानें गईं, उसे कहीं से भी उचित नहीं कहा जा सकता!

मगर क्या इसी वजह से व्यापक जनाक्रोश की इस अभिव्यक्ति ने उजागर किए सवालों की अहमियत कम हो जाती है? निश्चित ही नहीं!

वैसे इन तथ्यों की पड़ताल करना भी समीचीन होगा कि (जैसा कि कई स्वतंत्र विश्लेषणों में स्पष्ट किया गया है) कई स्थानों पर इस हिंसा के पीछे दक्षिणपंथी संगठनों एवं उनके कारिंदों का हाथ था, जो दलित उभार को कुचलना चाहते थे तथा साथ ही साथ उसे बदनाम करना चाहते थे. ( Click here for the full article :http://thewirehindi.com/39182/sc-st-act-dalit-agitation-narendra-modi-government/)

 

गाय के नाम पर जनतंत्र वध

हिंगोनिया गोशाला, जयपुर के प्रभारी मोहिउद्दीन चिंतित हैं। जयपुर म्युनिसिपल कॉरपोरेशन द्वारा संचालित इस गोशाला में नौ हजार से अधिक गायें रखी गई हैं। इनमें 30 से 40 गायें लगभग हर रोज मर रही हैं, मगर कोई देखने वाला नहीं है। वहां न इनके खाने-पीने का सही साधन है, न ही बीमार गायों के इलाज का कोई उपाय। लिहाजा, 200 से अधिक कर्मचारियों वाली इस गोशाला में गायों की मौत पर काबू नहीं हो पा रहा है। वैसे, एक अखबार के मुताबिक अप्रैल में अकेले जयपुर शहर में हर रोज 90 गायों की मृत्यु हुई, जिनकी लाशें हिंगोनिया भेज दी गईं।

याद रहे, राजस्थान देश का पहला राज्य है जहां स्वतंत्र गोपालन मंत्रालय की स्थापना की गई है। लेकिन जयपुर में प्रति माह 2,700 गायों की मौत के बावजूद इस मसले पर मंत्री महोदय कुछ भी कर नहीं पाए। दरअसल असली मामला बजट का है। मोदी सरकार ने सामाजिक क्षेत्रों की सब्सिडी में जबर्दस्त कटौती की है, जिसका असर पशुपालन, डेयरी तथा मत्स्यपालन विभाग पर भी पड़ा है। पिछले साल की तुलना में इस साल 30 फीसदी की कटौती की गई है। Continue reading गाय के नाम पर जनतंत्र वध