पिछले कुछ समय से नागार्जुन और हरिशंकर परसाई की याद बेइंतहा सता रही है: भारतीय राजनीति के इस दौर का वर्णन करने के लिए हमें उनकी कलम की ज़रूरत थी !
क्रान्ति सतत चलने वाली प्रक्रिया है और असली विद्रोही वह है जो छह महीने बाद अपनी कुर्सी खुद उलट दे. आम आदमी पार्टी और दिल्ली सरकार के मुखिया ने केंद्र सरकार के खिलाफ़ बगावत की शुरुआत की,तो ऐसा ही लगा. दिल्ली के केंद्र में रेल भवन के पास दिल्ली की पूरी सरकार अपने समर्थकों के साथ दस दिनों के धरने पर बैठ गए. उन्होंने धमकी दी कि वे राजपथ को लाखों लोगों से पाट देंगे और केंद्र सरकार की नींद हराम कर देंगे.किसान और सैनिक जब मिल जाएं तो क्रांति शुरू हो जाती है. इसकी पैरोडी करते हुए अरविंद ने दिल्ली के पुलिसवालों को वर्दी उतार कर धरने पर शामिल होने का आह्वान किया. कुछ लोगों को जयप्रकाश नारायण की याद आ गई. एक साथ लेनिन, लोहिया,क्रोपाटकिन और जयप्रकाश का तेज अरविंद केजरीवाल के रूप में पुंजीभूत हुआ. गांधी का आभा वलय अन्ना हजारे से हट कर अरविंद के माथे के पीछे पीछे तो तब ही लग गया था जब उनका भरपूर इस्तेमाल कर ठिकाने लगा दिया गया. क्या यह 2014 का भारतीय तहरीर चौक होने जा रहा है?
दिल्ली के मुख्य मंत्री ने एक बार फिर आज़ादी की नई लड़ाई की घोषणा की.यह दृश्य क्रांतिकारियों,समाजवादियों,अराजकतावादियों, सबके के लिए एक पुराने सपने के पूरा होने जैसा ही था. एक पुरानी, दबी हुई इच्छा के पूरा होने का क्षण!यह आज़ादी झूठी है वाले नारे , वंदे मातरम और भारत माता का जयकार से रोमांचित होने का सुख!! Continue reading सतत क्रान्ति की पैरोडी