अतिथि पोस्ट : चिंटू

जिशा, मेरी दोस्त मेरी यार, क्या कहूँ यार तुम्हारे साथ जो दंविये बर्बरता हुई उसके लिए मुझे शब्द नहीं मिल रहे हैं कुछ कहने को. ये देश ये समाज हर रोज़ ऐसे झटके देता रहता है और इतना देता है, इतना देता है, की हमारे लिए वीभत्स से वीभत्स घटना क्रूरतम से क्रूरतम घटना साधरण बन गई है और इन घटनाओं को पचाने की क्षमता में भी हम माहीर हो गए है. देखो न दोस्त, असाधारण कहाँ कुछ रह गया है. बचपन से आज तक तो यही सब देख- देख कर पले बढे हैं हम सब की, जो कुछ हो अपना हक़ मत मांगना, पढने लिखने की बात मत करना , बाप या भाई लात घूंसे मार- मार कर तुम्हे अधमरा कर दे लेकिन एक शब्द भी उनके खिलाफ बोलने की गुस्ताखी मत करना, गाँव के उच्च जाति वर्ग के सामंती तुम्हे अगर छेड़े तुम्हारा बलात्कार करे तो उसका बहिष्कार मत करना कियोंकि ये तो उनका जन्म सिद्ध अधिकार है.
तुम्हारे लिए जो लक्ष्मण रेखा खिंची गई है उससे बाहर जाने की कोशिश की तो तुम्हारी शामत आना पक्की है. और शादी? ये तो दूसरी जात में तो दूर की बात अपनी जाति में भी करने का अधिकार या आजादी की बात मत करना ये तय करना घर के बड़े पुरुषों के कंधे पर छोड़ो. सती सावित्री बनो, एक सद्गुणी बेटी, बहु और पत्नी बनो इसी में तुम्हारी भलाई है.
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