मुज्ज़फरनगर की सांप्रदायिक हिंसा की जिम्मेदारी तय करने का मसला पेचीदा होता जा रहा है.क़त्ल हुए हैं,बलात्कार की रिपोर्ट है, घर लूटे और बर्बाद किए गए हैं.हजारों मुसलमान अपने घरों और गावों से बेदखल कर दिए गए हैं.यह सब कुछ अपने आप तो नहीं हुआ होगा.किसी भी अपराध के मामले में इंसाफ की प्रक्रिया की शुरुआत अभियुक्तों की पहचान और उनकी नामजदगी से होती है.मुज्ज़फरनगर के हिंदू ग्रामीणों को इस पर ऐतराज है.उनका दावा है कि शिकायतें, जो मुस्लिम उत्पीड़ितों ने दर्ज कराई हैं और जिनके आधार पर अभियुक्तों को चिह्नित किया गया है,गलत हैं.वे और उनके लोग निर्दोष हैं और इसलिए पुलिस को धर पकड़ की अपनी कार्रवाई से बाज आना चाहिए.
अभियुक्तों को गिरफ्तार करने गई पुलिस पर हमले किए जा रहे हैं और पकड़े गए लोगों को छुड़ा लिया जा रहा है.हथियारों के साथ औरतें सड़क पर हैं,कहते हुए कि वे अपने बच्चों और मर्दों के साथ नाइंसाफी नहीं होने देंगी.किसी तुलना के लिए नहीं,लेकिन ऐसे सामूहिक प्रतिरोध के बारे में राय कायम करने एक लिए क्या हम किसी दहशतगर्द हमले में शक की बिना पर किसी मुस्लिम बस्ती में की जा गिरफ्तारी के इसी तरह के सामूहिक विरोध की कल्पना कर सकते हैं?उस समय हम उसे उस समूह की अविचारित सामूहिक प्रतिक्रिया ही मानेंगे. Continue reading सामूहिक अपराध और जवाबदेही
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