
[यह लेख पहले जनवादी लेखक संघ की पत्रिका नया पथ के जनवरी-मार्च २०२१ अंक में प्रकाशित हुआ था. आगामी 11-12 सितम्बर को अमेरिका में होने जा रहे Dismantling Global Hindutva सम्मलेन से उद्वेलित हिंदुत्व के प्रचारक अब इस सम्मलेन को रद्द कराने की मुहीम में उतर चुके हैं. उनका चालाकी भरा तर्क यह है कि यह सम्मलेन हिन्दू-विरोधी है. इस सन्दर्भ में यह दोहराना बेहद ज़रूरी है कि हिंदुत्व विस्तारवादी फौजी तसव्वुर से लैस एक राजनीतिक विचारतंत्र जो हिन्दुओं के नाम पर हिंसात्मक राजनीती करता है मगर इसका हिन्दू धर्म या जीवन शैली से कोई सम्बन्ध नहीं है. इस वजह से इस लेख को यहाँ साझा किया जा रहा है.]
“समस्त राजनीति का हिन्दूकरण करो और हिन्दूतंत्र का सैन्यीकरण करो – तब हमारे हिन्दू राष्ट्र (नेशन) का पुनरुत्थान होना तय है, उसी तरह जैसे अंधेरी रात के बाद सुबह का आना अनिवार्य होता है”। – विनायक दामोदर सावरकर, 25 मई 1941 को अपने 59 वें जन्मदिन पर हिंदुतन्त्र (हिन्दूडम) के नाम संदेश।
“हमारी भुजायें एक ओर अमेरिका तक फैली थीं – कोलंबस के अमेरिका ‘आविष्कार’ से बहुत पहले – तो दूसरी ओर चीन, जापान, कम्बोडिया, मलय, श्याम, इंडोनेशिया और समस्त दक्षिण-पूर्व एशिया तक फैली हुई थीं, और उत्तर में मंगोलिया और साइबेरिया तक। हमारा शक्तिशाली राजनीतिक साम्राज्य इन दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्रों तक फैला था और 1400 वर्षों तक जारी रहा, अकेले शैलेन्द्र साम्राज्य 700 वर्षों तक फलता फूलता रहा – और चीन के विस्तार के खिलाफ़ चट्टान की तरह खड़ा रहा”। – माधव सदाशिव गोलवालकर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक, बँच ऑफ थॉट्स, विक्रम प्रकाशन, बंगलोर, 1968, पृ 9
हिन्दुत्व-विचारतंत्र के इन दो महारथियों की ये उक्तियाँ पढ़ने के बाद आइए अब एक उद्धरण उस शख़्स का देखें जिसे हिंदुत्ववादी हड़पने की पुरज़ोर कोशिश किया करते हैं। ये शख़्स और कोई नहीं स्वामी विवेकानंद हैं। मुलाहिज़ा फरमाएं :
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