मेरठ के एक निजी विश्वविद्यालय में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए क्रिकेट मैच में पाकिस्तान की जीत पर कश्मीरी छात्रों की खुशी जाहिर करने पर स्थानीय छात्रों द्वारा उनकी पिटाई और तोड़-फोड़ के बाद तीन दिनों के लिए छियासठ छात्रों के निलंबन (निष्कासन नहीं) और फिर ‘उनकी हिफाजत के लिए’ उन्हें उनके घर भेजने के विश्वविद्यालय के फैसले के बाद उन छात्रों पर राष्ट्रद्रोह की धाराएं लगाने से लेकर उन्हें वापस लेने तक और उसके बाद भी जो प्रतिक्रियाएं हुई हैं,वे राष्ट्रवादी नज़रिए मात्र की उपयोगिता को समझने के लिहाज से काफी शिक्षाप्रद हैं.आज यह खबर आई है कि ग्रेटर नॉएडा के शारदा विश्विद्यालय में भी छह छात्रों को छात्रावास से ऐसी ही घटना के बाद निकाल दिया गया है जिनमें चार कश्मीरी हैं. मामला इतना ठंडा क्यों है, ऐसी निराशा जाहिर करते हुए फेसबुक पर टिप्पणी की गयी है और उसके बाद तनाव बढ़ गया है.
रोशोमन नियम के अनुसार घटना के एकाधिक वर्णन आ गए हैं और तय करना मुश्किल है कि इनमें से कौन सा तथ्यपरक है. स्थानीय (राष्ट्रीय या राष्ट्रवादी?) तथ्य यह है कि पाकिस्तानी खिलाड़ियों के प्रदर्शन और फिर उस टीम की जीत पर कश्मीरी छात्रों ने पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए जिससे भारतीय टीम की हार से पहले से ही दुखी स्थानीय छात्रों में रोष फैल गया. निलंबित कश्मीरी छात्रों का कहना है कि वे हर उस खिलाड़ी के प्रदर्शन पर ताली बजा रहे थे जो अच्छा खेल रहा था. बेहतर टीम पकिस्तान के जीतने पर उनका खुशी जाहिर करना कहीं से राष्ट्रविरोधी नहीं कहा जा सकता. उनके मुताबिक इसके बाद उन्हें पीटा गया और तोड़-फोड़ की गई. Continue reading राष्ट्रवाद का मौसम