अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि राज्य एवं जिला स्तरों पर ऐसी निगरानी कमेटियों का भी निर्माण किया जाए तथा ऐसे कैमरों को स्थापित करने की दिशा में तेजी लायी जाए।

सर्वोच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका के संदर्भ में पिछले दिनों एक अहम फैसला दिया। इसके तहत उसने तमाम राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वह हर थाने में क्लोजड सर्किट टीवी (सीसीटीवी), जिसमें आवाज़ रिकॉर्डिंग की भी सुविधा हो तथा रात में ‘देखने’ की व्यवस्था हो, जल्द से जल्द स्थापित करे। अदालत की इस त्रिसदस्यीय पीठ ने – जिसमें न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति के एम जोसेफ और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस भी शामिल थे – अपने आदेश में यह भी जोड़ा कि ऐसी सुविधा केन्द्रीय एजेंसियों के दफ्तरों में भी स्थापित की जानी चाहिए फिर चाहे सीबीआई हो, नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) हो या नारकोटिक्स कन्टोल ब्यूरो (एनसीबी) हो या एनफोर्समेण्ट डायरेक्टोरेट हो।
भारत जैसे मुल्क में पुलिस बलों या अन्य केन्द्रीय एजेंसियों के दस्तों द्वारा की जाने वाली प्रताड़ना एवं यातनाओं से अक्सर ही रूबरू होना पड़ता है। आप तमिलनाडु के थोडकुडी जिले में पिता पुत्रों- जयराज उम्र 62 वर्ष और बेंडक्स उम्र 32 साल – की हिरासत में मौत के प्रसंग को देखें, जब दोषी पुलिसकर्मियों की संलिप्तता को साबित करने के लिए जन आंदोलन करना पड़ा था। जून, 2020 या आप कुछ वक्त़ पहले राजधानी दिल्ली से ही आर्म्स एक्ट के तहत बंद विचाराधीन कैदी की पुलिस द्वारा निर्वस्त्र कर की गयी पिटाई का दृश्य चर्चित हुआ था जब किसी न कैमरे में उपरोक्त नज़ारा कैद कर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया था।
त्रिसदस्यीय पीठ का मानना था कि चाहे मानवाधिकार आयोग हो या मुल्क की अदालतें हो, वह किसी विवाद की स्थिति में इस सीसीटीवी फुटेज का इस्तेमाल कर सकती हैं, जहां हिरासत में बंद लोगों के मानवाधिकारों के हनन की अक्सर शिकायतें आती रहती हैं और जनाक्रोश भी सड़कों पर उतरता रहता है। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि राज्य एवं जिला स्तरों पर ऐसी निगरानी कमेटियों का भी निर्माण किया जाए तथा ऐसे कैमरों को स्थापित करने की दिशा में तेजी लायी जाए।
गौरतलब है कि जहां तक थानो में सीसीटीवी लगाने का सवाल है, देश के अन्य न्यायालय भी इस किस्म का निर्देश पहले दे चुके हैं।
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[This detailed report was prepared by Kavita Srivastava, the Jaipur-based general secretary of the