कुछ दिन पहले तक माफी की माँग की जा रही थी. पिछले कुछ सालों से नरेंद्र मोदी से बार बार अनुरोध-सा किया जा रहा था कि वे मुसलमानों से माफी भऱ माँग लें,बात रफ़ा दफ़ा हो जाएगी।मुसलमानों को सुझाव दिया जा रहा था कि वे माफी की सूरत में इंसाफ की अपनी जिद छोड़ दें. ऐसे मुसलमान खोज लिए गए हैं जो यह बता रहे हैं कि इस्लाम में तीन दिन से ज़्यादा शोक की इजाजत नहीं है,अब तो बारह साल गुजर चुके हैं. यह भी कहा गया कि 2002 के बाद गुजरात में जो सामान्य विकास हुआ है, उसका लाभ आखिर वहाँ के मुसलमानों को भी हुआ है. मानो हत्याओं और बलात्कार की भरपाई उस विकास के माध्यम से कर दी गई है.
अब पिछले कुछ वक्त से यह कहा जाने लगा है कि नरेंद्र मोदी तो अपने अतीत से आगे बढ़ जाना चाहते हैं, ये तो उनके निंदक हैँ जो उन्हेँ आगे बढ़ने देना नहीं चाहते. इस तर्क से नरेंद्र मोदी प्रगतिशील, भविष्यद्रष्टा और उनके आलोचक प्रतिक्रियावादी व शिकायती दिखने लगे हैं. मुसलमानों को पहले से ही कहा जाता रहा है कि उन्हें पीड़ित-ग्रंथि से बाहर निकलने और आगे देखने की आदत डालने की ज़रूरत है. इस प्रकार का सुझाव कई बार दबे-ढँके तरीके से और अब तो खुले आम दिया जाने लगा है कि उन्हें यथार्थवादी होना चाहिए. मतलब मान लेना चाहिए कि भारत में यह सब कुछ बीच-बीच में उनके साथ होता रहेगा. अगर वे इंसाफ वगैरह की जिद पर अड़े रहे तो उनकी बाकी जिंदगी का क्या होगा ! क्या वे तमाम ज़िंदगी रोते-कुढ़ते ही गुजार देंगे? Continue reading नरेंद्र मोदी और मुसलमान